राजस्थान की मिट्टी की खुशबू, लोकगीतों की मधुर गूंज और ग्रामीण जीवन की सादगी में डूबा बूंदी महोत्सव का अंतिम दिन विदेशी सैलानियों के लिए एक अद्भुत अनुभव लेकर आया। सोमवार को आयोजित ‘विलेज सफारी’ ने मेहमानों को बूंदी की जीवंत लोक संस्कृति के बेहद करीब ला दिया। पर्यटन स्वागत केंद्र से सैलानियों का काफिला राजस्थानी परंपराओं के अनुरूप तिलक और माल्यार्पण के साथ रवाना हुआ। पर्यटन अधिकारी प्रेम शंकर सैनी ने सभी वाहनों को हरी झंडी दिखाकर ठीकरदा गांव की ओर रवाना किया।
जैसे ही काफिला बूंदी की संकरी गलियों और हरे-भरे खेतों के बीच से गुज़रा, विदेशी मेहमानों ने अपने कैमरों में ग्रामीण जीवन के अनोखे दृश्य कैद किए। गांव पहुंचने पर ढोल-नगाड़ों और लोकगीतों के बीच उनका भव्य स्वागत किया गया। महोत्सव समिति सदस्य राजकुमार दाधीच ने बताया कि ठीकरदा गांव की महिलाओं ने सैलानियों को मांडणा बनाने, चाक पर मिट्टी के बर्तन गढ़ने और आंगन लीपने की कला सिखाई। विदेशी मेहमानों ने भी पूरे उत्साह से मिट्टी में हाथ आजमाया।

लोकगीतों की धुन पर कलाकारों ने गेर नृत्य और कालबेलिया की प्रस्तुति दी। जैसे ही ‘केसरिया बालम’ और ‘पधारो म्हारे देश’ की आवाज गूंजी, माहौल पूरी तरह रंगीन हो उठा। कई विदेशी सैलानी खुद भी कलाकारों के साथ झूमते और नाचते नजर आए।
कार्यक्रम के अंत में गांव की महिलाओं ने छाछ और राबड़ी जैसे पारंपरिक व्यंजन मिट्टी के कुल्हड़ों में परोसे। इसका स्वाद चखकर सैलानियों ने कहा— “इससे अधिक प्राकृतिक और स्वादिष्ट कुछ हो ही नहीं सकता।”

दाधीच ने बताया कि विलेज सफारी का उद्देश्य विदेशों से आए मेहमानों को राजस्थान की असली संस्कृति और ग्रामीण जीवन से जोड़ना है। ठीकरदा जैसे गांव राजस्थान की आत्मा हैं, जहां सादगी और संस्कृति साथ-साथ सांस लेती हैं।


